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जहांगीरनामा।

सजा हुआ था इसकी संख्या भी दस हजारसे बढ़कर चौदह हजार तक पहुंची थी।

उधर बरासे राजा मानसिंह खानजहां अमीरूलउमरा और दूसरे अमीर चलें। दोनो दल एक दूसरेके कूच मुकामकी खबर रखें और एक दिन नियतकर गनीमको दोनो ओरसे जाघेरें। जो उस नियत दिनका ध्यान रहता, सबके दिल एक होते और आपाधापी न होती तो आशा थी कि परमात्मा जय देता। अबदुल्लहखां जब घाटियोंसे उतर कर गनीमके देश में गया तो उसने न तो हरकारोंको भेजकर उस फौजकी खबर ली न ठहरावके अनुसार अपने कूचको उनके कूचसे मिलाया और न एकही दिन और समयमें मिलकर मनीमको मारनेका प्रवन्ध किया। वरञ्च उसने अपनेही बल और बूतेका विश्वास करके यह विचारा कि जो मुझहीसे फतह होजावे तो बहुत अच्छा हो। रामदासने बहुत चाहा कि वह धैर्य्यसे बढ़े और जल्दी न करे परन्तु कुछ फल न हुआ। गनीमने जो उससे डर रहा था बहुतसे सरदार और बरगी(१ भेज दिये थे जो दिनको तो लड़ते थे और रातको बाण तथा दूसरे अग्न्यस्त्र फेंका करते थे। यहां तक कि गनीमके पास तो पहुंच गये पर उस सेनाके कुछ समाचार नहीं पहुंचे। अम्बर चम्पूने जो दौलताबादमें बड़े जमावसे निजामुल्मुल्कके घरानेके एक लड़केको लिये बैठा था बारी बारीसे फौजें भेजीं। इस तरह दक्षिणियोंका बल बढ़ गया उन्होंने बाणों और दूसरे यन्त्रोंसे आग बरसाकर अबदुल्लहखां की नाक में दम करदिया। राजहितैषियोने यह दशा देखकर कहा कि उस फौजसे तो कुछ भी सहायता नहीं पहुंची और दक्षिणी सब हमारेही ऊपर चढ़े चले आते हैं इसलिये उचित यही है कि अभी तो लौट चलें फिर देख लेंगे। यह बात सबने स्वीकार की। तड़के ही कूच कर दिया। दक्षिणी अपनी सीमा तक पीछा करते चले आये। रोज लड़ाई होती थी। कई कामके आदमी काम आये।


(१) लुटेरे।