पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१७

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भूमिका

जहांगीर बादशाहकी इस किताबका नाम तुजुका जहांगीरी अर्थात् जहांगीर प्रवन्ध है। तुर्कीभाषामें प्रवन्धको तुजुक कहते हैं। पर इस पुस्तकको भोजप्रवन्ध या कुमारपाल प्रवन्ध आदिको समान न समझना चाहिये। क्योंकि उन पोथियों में बिना संवत् मिती और पते ठिकानेको कथाएं हैं और यह पोथी सप्रमाण रोजनामचा है। विस्तारभयसे हमने इस जहांगीरनामेका अक्षर अक्षर अनुवाद नहीं किया है, अधिक स्थानों में सारांशसे काम लिया है और जहां अच्छा देखा है उसका पूरा आशय ले लिया है। तथा कहीं कहीं बादशाहको लेखका यथावत अनुवाद भी किया है।

बहुत जगह नोट भी लिखे हैं तथा मुसलमानी और इलाही तारीख और सनीके साथ हिन्दी तिथि और संवत् गणित करके लिखे हैं। इसमें हमें अपनी ३५० वर्षकी इतिहाससहायक जन्त्री से बहुत सहायता मिली है।

इस प्रकार यह काम जो १ अप्रैल सन् १९०१ ईस्वीमें छेड़ा गया था अब चार सालके परिश्रमके पश्चात् पूरा हुआ है। पर इतने पर भी जबतक यह काम बिद्वानोंके पसन्द न आवे तबतक मैं अपनेको कतार्थ नहीं समझ सकता। ग्रन्थ बनाना सहज नहीं है फिर एक भाषासे दूसरी भाषामें अनुवाद करनेके लिये बहुतही समझ चाहिये। उसका मुझमें घाटा है। पर इतने पर भी अपनी मातृभाषामें इतिहासका घाटा देखकर इतना साहस करना पड़ा है।

तुजुक जहांगीरीमें तारीख महीने और सन् हिजरी भी लिखें हैं और इलाही भी। हिजरी मुसलमानोंका पुराना सन् है और इलाही अकबरने चलाया था। मैंने दोनों के अनुसार हिन्दी तिथि महीने और वर्ष चण्ड पञ्चाङ्गसे गणित(२) करके इस पुस्तकामें यथा स्थान रख दिये हैं। यह श्रम न किया जाता तो पाठक ठीक तिथि न समझ सकते।


(२) इस गणितसे मैंने एक जन्त्री बना डाली है जो तारीखोंके मिलाने में बहुत काम देती है।