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जहांगीरनामा।

बादशाहने उसका भार निवारण करनेके वास्ते अपनेको सोने चांदी में तौला। अठारहसौ तोले सोना और उननचास सौ रुपये चढ़े। यह धन अनेक प्रकारके धान्य और हाथी घोड़े गाय आदि सहित सागर तथा अन्य नगरों में भेजकर गरीबोंको बंटवा दिया।

दक्षिण और खानआजम।

दक्षिणमें परवेजके सेनापति, खानखानांके मुखिया, राजा मान- सिंह, खानजहां, आसिफखां, अमीरूलउमरा जैसे बड़े बड़े अमीरों तथा दूसरे सरदारों और मनसबदारोंके सहायक होनेसे भी कुछ काम नहीं निकला था बल्कि यह लोग अहमदनगर जाते हुए आधे रास्ते से लौट आये थे जिसके विषयमें भरोसेके मनुष्यों और सच्चे खबरनवीसोंने बादशाहको अर्जियां लिखी थीं कि इस लशकरके तितर बितर होनेके और भी कई कारण है। परन्तु उनमें मुख्य अमीरोंकी फूट और विशेष करके खानखानांको अन्तरदुष्टता है। इसपर बादशाहने उस गड़बड़की शान्तिके लिये खानआजमको नई सेनाके साथ भेजना स्थिर करके ११ दे (माघ बदी ३) को यह सेवा उसे सौंपी और दीवानोंसे शीघ्रही उसके जानेका प्रवन्ध कराके एक हजार मनसबदार सवारों दोहजार अहदियों और खानआलम आदि अमीरोंके साथ उसको बिदा किया। कई हाथी और तीस लाख रुपये दिये। भारी सिरोपाव जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ जीनका घोड़ा और खासा हाथी देकर पांच लाख रुपये मददखर्चके लिये दिलाये जिनके वास्ते दीवानोंको उसकी जागीरसे भरा लेनेका हुक्म हुआ। उसके साथके अमीरोंको भी घोड़े और सिरोपाव मिले। महाबतखांके मनसबके चार हजारी जात और तीन हजार सवारों पर पांचसौ सवार और बढ़ाकर हुक्म दिया कि खानआजम और इस लशकरको बुरहानपुरमें पहुंचाकर खानआजमकी सरदारीका हुक्म वहांके सब अमीरोंको सुना दे और पहले भेजे हुए लशकर में जो गड़बड़ हुई है उसका निर्णय करके खानखानांको अपने साथ ले आवे।