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संवत् १६६७।

देने लगे। तब लाचार होकर रास्तेमेंसेही लौट आये और किले वाले जो इनके आनेका रास्ता देख रहे थे यह समाचार सुनतेही घबराकार निकलने लगे। ख्वाजाबेगमिरजाने उनको बहुत रोका। जब नहीं रुके तो निदान सन्धि करके अपनी सेना सहित निकाला और बुरहानपुरमें शाहजादेके पास आगया। बादशाहको जब इस हालकी अर्जी पहुंची तो उन्होंने ख्वाजाबेगका कुछ कसर न देखकर उसका मनसब जो पांच हजारी जात और सवारका था बना रखा और उसके वास्ते जागीर देनेका भी हुक्म चढ़ा दिया।

बीजापुर।

९ रमजान (अगहन सुदी ११) को दक्षिणसे कई अमीरोंकी, अर्जी पहुंची यि मीर जमालुद्दीन २२ शावान (अगहन बदी ९) को बीजापुर पहुंचा। आदिलखांने अपने वकीलको २० कोस अग- वानीमें भेजा था तीन कोस तक आप भी आकर मीरको अपने स्थान पर लेगया।

शिकार।

१५ (पौष बदी २) गुरुवारकी रात(१)को एक पहर छ: घड़ी रात गये ज्योतिषियोंके बताये हुए मुहर्तमें बादशाहने आगरेसे शिकारके वास्ते प्रयाण करके दहराबागमें डेरा किया। खेतीका बिगाड़ न होनेके अभिप्रायसे हुक्म दिया कि आवश्यक सेवकों और निज अनुचरोंके अतिरिक्त और सब लोग नगरमें रहें। नगरकी रक्षा ख्वाजेज़हांको सौंपी।

२८ आजर २१ रमजान (पौष बदी ९) को ४४ हाथी जो कासिमखांके बेटे हाशिमखांने उड़ीससे भेटके लिये भेजे थे, पहुंचे। उनमेंसे एक हाथी बादशाहके बहुत पसन्द आया। वह खासेके हाथियोंमें बांधा गया।

सूरज गहन।

२८ रमजान (पौष बदी ३०) को सूरजगहन(१) हुआ।


(१) मुसलमानी हिसाबसे शुक्रकी रात।

(२) चण्डू पञ्चांगमें यह गहन धन राशि पर १५ विश्वा लिखा है।

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