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जहांगीरनामा।

१७ आबान (अगहन बदी ९) मङ्गलवारको खुर्रमका व्याह मिरजा मुजफ्फरहुसैन सफवीकी बेटोसे हुआ। बादशाहांखुर्रमके घर गया। रातको वहीं रहा। बहुतसे अमीरोंको सिरोपाव मिले और कुछ कैदी भी गवालियरके किले से छोड़े गये। कुछ चांदी सोना और अन्न आगरेके फकीरोंको बांटा गया।

दक्षिण।

इसी दिन खानजहांकी अर्जी पहुंची कि खानखानांके बेटे एरज को शाहजादेकी आज्ञा लेकर दरबारमें भेजा है। अबुलफतह बीजापुरीके भेजनेका भी हुक्म था परन्तु वह कामका आदमी है और अभी उसके भेजनेसे दक्षिणी सरदारोंको आशा भङ्ग होती है जिनको बचनपत्र दिये गये हैं, इसलिये रख लिया है। राय कल्ला के बेटे केशवदास मारूके वास्ते हुक्म हुआ कि उसके भेजने में ढील भी हो तोभी जैसे बने वैसे भेजदो। शाहजादेने यह बात जानते ही उसे छुट्टी देदी और कहा कि मेरी तरफसे अर्जी में लिखना कि जब मैं अपना जीना पूज्यपिताकी सेवाहीके लिये चाहता हूं तोकेशवदासका होना न होनाही क्या जो उसे भेजनेमें ढील करूं? पर मेरे विश्वासपात्र नौकरोंके किसी न किसी प्रसङ्गसे बुला लेनेसे दूसरे आदमी निराश और हताश होते हैं इससे सीमाप्रान्तमें आपकी अप्रसन्नताका भ्रम फैलता है। आगे आपकी इच्छा।

अहमदनगरका छूटना।

जिस दिनसे अहमदनगर शाहजादे दानियालने लिया था अब तक ख्वाजाबेगसिरजा सफवीके संरक्षणमें था। यह मिरजा ईरानके शाहतुहमाल्य सफबीके भाई बन्दोंमेंसे था। अब दक्षिणियोंने आकर उस किलेको घेरा तो मिरजाने उसके बचाने में कोताही न की। खानखानां और दूसरे अमीर जो बुरहानपुरमें इकट्ठे हुए थे परवेज के साघ दक्षिणियोंसे लड़नेको गये परन्तु आपसके विरोधसे उस भारी लशकरको जो बड़े बड़े काम करनेको समर्थ था धान चारेंका प्रवन्ध किये बिना औघट घाटों और बिकट पहाड़ोंमेंसे लेगये। इससे थोड़ेही दिनोंमें यह दशा होगई कि लोग रोटीके वास्ते जान