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जहांगीरनामा।

है आया और वहांवालोंसे जो पक्के दंगई हैं मेलमिलाप करके बोला कि मैं खुसरो हूं बन्दीखानेसे भागकर आया हूं। जो तुम मुझे सहायता दोगे तो कार्य्यसिद्ध होनेके पीछे तुम्ही मेरे प्रधान कार्य्यकर्ता रहोगे।

उसने अपने खुसरो होनेका निश्चय करानेके लिये उन्हें अपनी आंखके पास घावका एक चिन्ह दिखाया। कहा कि कारागारमें मेरी आंख पर एक कटोरी बांधी गई थी उसका यह चिन्ह है। इस छलसे बहुतसे पैदल और सवार उसके पास जुड़ गये और अफजलखांक पटने में न होनेको अपना अहोभाग्य समझकर चढ़ दौड़े और गत रविवारको २।३ घड़ी दिन चढ़े पटने में जा पहुंचे। किसी बातका विचार न करके सीधे किलेको गये। शैख बनारसी घबरा कर द्वार पर आया। परन्तु किवाड़ बन्द करनेका अवकाश न पाकर दीवान गयास सहित खिड़कीसे बाहर निकला और नावमें बैठकर अफजलखांको समाचार देनेको गया।

उन दुराचारियोंने किले में घुसकर अफजलखांका धनमाल बाद- शाही खजाने सहित लूट लिया। शहरके भीतरी और बाहरी बदमाश सब उससे आमिले।

अफजलखांको गोरखपुरमें यह खबर लगतेही बनारसी और गयास भी जलमार्गसे वहां पहुंचे। शहरसे लिखा आया कि यह खुसरो नहीं है। तब अफजलखां रामभरोसे शत्रुसे लड़नेको चल कर पांचवें दिन पटनेके पास पहुंचा। यह सुनकर कुतुबने भी अपने एक विश्वासपात्रको किलेमें छोड़ा और चार कोस सामने आकर पुनपुन नदीके ऊपर अफजलखांसे लड़ाई की और शीघ्रही भागकर किले में घुस गया। पर अफजलखांके पीछे लगे चले आने में किवाड़ मूंदनेका औसान न पाकर उसीकी हवेलीमें जा बैठा और दोपहर तक लड़ता रहा। तीस आदमी तीरोंसे मारे। फिर जब उसके साथी मारे गये तो शरण लेकर अफजलखांके पास चला आया। अफजलखांने उपद्रव मिटानेके लिये उसको उसी दिन मार डाला और उसके साथियोंको पकड़ लिया।