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संवत् १६६७।

तो कहा कि मर गई। बादशाहने बहुतसो छानबीनके पीछे मुक- र्रबखांकी एक नौकरको जो इस अन्यायका कारण हुआ था दण्ड दिया और आधा मनसब मुकर्रबखांका घटाकर उस बुढ़ियाको जीविका करदी और रास्तेका खर्च भी दिया।

दान।

७ (बैशाख सुदी १०) रविवारको दो पापग्रहों (१) का जोग हुआ। बादशाहने चांदी सोने और टूमरी धातुकी बस्तुओं और पशुओंका दान करके कई देशोंके कंगालोंको बांटनेके वास्ते भेजा।

कन्धार।

२ लाख रुपये लाहोरके खजानेमे कन्धारके किलेकी सामग्रीके वास्ते गाजीवेगतरखांके पास भेजे गये।

बिहार में उपद्रव।

१९ फरवरदीन(२) (जेठ बदी २) को पटनेमें एक विचित्र घटना हुई वहांका हाकिम अफजलखां अपनी नई जागीर गोरखपुरमें जो पटनेसे ६० कोम है गया था। उसका विचार था कि जब कोई शत्रु नहीं है तो अधिक प्रबन्ध करनेको आवश्यकता नहीं है किला और शहर शैख बनारसी तथा दीवान गयासजैनखानीको सौंपा गया था उस समय उरछाके लोगोंमेंसे कुतुब नाम एक अप्रसिद्ध पुरुष फकीर बना हुआ उज्जैनियों(३)के देशमें जो पटनेके पास


(१) चण्डू पञ्चाङ्गमें बैशाख सुदी १० को संगल और शनि कुंभ राशि पर थे शनि बैशाख बदी ७ को कुंभ राशि पर आकर मंगलके शामिल हुआ था। बादशाही पञ्चांगमें बैशाख सुदी १० को आया होगा।

(२) तुजुकजहांगीरी में १९ फरवरदील ४ सफारको लिखा है पर ४ सफर तो फरवरदीनको थी और १९ फरवरदीनको १४ थी पर आगे रविवारका दिन भी लिखा है सो रविवार १९ उर्दीबहिश्त को था इसलिये १९ और १४ ही सही है।

(३) उज्जैनियोंका देश वही गोरखपुरका प्रान्त जहां उज्जैनिया जातिके पंवार राजपूत रहते हैं।