छठा वर्ष।
सन १०१९।
चैत्र सुदी ३ संवत् १६६७ से चैत्र सुदी २ संवत् १६६८ तक।
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१ मुहर्रम (चैत्र सुदी ३) शनिवारको रूपखवासने जिसका बसाया हुआ रूपवास था भेटकी सामग्री सजाकर बादशाहको दिखाई। बादशाहने उसमें से कुछ अपनी रुचिके अनुसार लेकर शेष उसीको देदी। सोमवारके दिन बादशाह मंडाकरके बागमें आगया जो आगरेके पास है।
बादशाहका आगरेमें आना।
मंगलवारको एक पहर दो घड़ी दिन चढ़े शहरमें प्रवेश होने का मुहर्त था। बादशाह बस्तीके प्रारम्भ होने तक घोड़े पर गया घागे इस अभिप्रायसे हाथी पर बैठकर चला कि जिसमें पास और दूरकी सब प्रजा देख सके। मार्गमें रुपये लुटाता चला। दोपहर बाद ज्योतिषियोंके नियत किये हुए समय पर सानन्द राजभवनमें सुशोभित हुआ जो नौरोजके निर्दिष्ट नियमोंके अनुसार अति सुन्दर और सुहावनी विधिसे सजाया गया था। बड़े बड़े भड़- कीले दल बादल डेरे और तम्बू ताने गये थे। बादशाहने सब सजावट देखकर ख्वाजेजहांकी भेटमेंसे जवाहिर और दूसरे पदार्थ स्वीकार किये शेष उसीको बखश दिये।
शिकारकी संख्या।
वादशाहने मृगयाके कर्मचारियोंको हुक्म दिया था कि जानेके दिनसे लौटनेकी तिथि तक जितने पशु शिकार हुए हों उनकी संख्या बतावें। उन्होंने बताया कि पांच महीने छः दिनमें तेरहसौ बासठ पशु पक्षी और हिंसक जन्तु मारे गये हैं—