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जहांगीर बादशाह संवत् १६६५।

रूमका कृत्रिम दूत।

तूरानका अकम नामक एक हाजी रूममें था वह अपनेको रूमके ख्वांदगार(१) (सुलतान) का दूत बनाकर आगरेमें बादशाह को सेवामें उपस्थित हुआ। एक जलजलूल पत्र भी उसके पास था। दरगाहके बन्दोंने उसके स्वरूप और दशाको देखकर उसके दूत होने में सन्देह किया। जहांगीर लिखता है--"हजरत अमीर तैमूरने रूमको जीता था। वहांका हाकिम एलद्रुमबायजीद पकड़ा आया। अमीरने उससे भेट और रूमकी सालभरकी उपज लेकर वह देश पूर्ववत उसको अधिकारमें रहने दिया। एलद्रुम- बायजीट उन्हीं दिनोंमें मर गया और अमीर तैमूर उसके बेटे मूसा चिलपीको वहांका देशाधिपति करके लौट आये। जबसे अबतक ऐसे उपकारके होते हुए भी वहांके कैसरों(२ की तरफसे कोई नहीं आया न उन्होंने कोई दूत भेजा। अब क्योंकर प्रतीत होसके कि यह भावरुन्नहर (तूरान) का पुरुष ख्वांदगारका भेजा हुआ है। यह बात मेरी समझमें नहीं आई और न किसीने उसकी साक्षी दी। इसलिये मैंने कह दिया कि जहां जाना चाहता हो चला जावे।"

बादशाहका ब्याह।

४ रबीउलअव्वल (अषाढ़ सुदी ६) को बादशाहका व्याह राजा मानसिंहके बड़े बेटे जगतसिंहको बेटीसे मरयममकानीके महल में हुआ। राजा मानसिंहने जो दहेज दिया उसमें ६० हाथी भी थे।

राणा।

बादशाहको राणाका विजित करना अवश्य था इसलिये महा-बतखांको इस लड़ाई पर नियत किया और निम्नलिखित सेना और रुपये उसे दिये—


(१) मुगलोंकी तवारीख में सुलतान रूम ख्वान्दगार लिखे जाते थे।

(२) रूमके सुलनानको कैसर भी कहते हैं।