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जहांगीर बादशाह स० १६६५।

भी साथ लाया था जिसके विषय में बादशाह लिखता है--"कुछ शऊरदार है हाथीकी सवारी अच्छी जानता है।"

"राजा सूरजसिंह हिन्दीभाषाके एक कविको भी लाया था जिसने मेरी प्रशंसामें इस भावको कविता भेट की--जो सुरजके कोई बेटा होता तो मदाही दिन रहता रात कभी न होती। क्योंकि सूरजको अस्त होने पर यह लड़का उसका प्रतिनिधि हो जाता और जगतको प्रकाशमान रखता। परमेश्वरका धन्यवाद है कि उसने आपके पिताको ऐसा पुत्र दिया जिससे उनके अस्त होने के पीछे मनुष्यों में शोकरूपी रात्रि नहीं व्यापी। सूरज बहुत पश्चात्ताप करता है कि हाय मेरा भी कोई ऐसा बेटा होता कि मेरी जगह बैठकर पृथ्वीमें बात न होने देता! जैसा कि आपके भाग्यके तेज और न्यायके तपसे ऐसी भारी दुर्घटना हो जाने पर भी संसार इस प्रकारसे प्रकाशमय होरहा है कि मानो रातका नाम और पताही नहीं है--ऐसी नई उक्ति हिन्दीभाषाके कवियोंकी कम सुनी गई थी। मैंने इसके इनाम में उस कविको हाथी दिया। राजपूत लोग कविको चारण(१) कहते हैं। इस समय के एक फारसीके कविने इस कविताके भावकी फारसी कविता की है।"



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(१) राजपूत कविको चारण नहीं कहते चारण तो एक जाति जो विशेष करके कविता करती है।