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जहांगीरनामा।

तीसरा नौरोज।

२ जिलहज्ज (चैत्र सुदी ५) गुरुवारको सूर्य्य मेख राशि में आया। बादशाहने रंगते गांवमें नौरोजका उत्सव करके खानजहांको पांच हजारी जात पांच हजारका मनसब और खाजाजहांको बखशीका पद दिया और वजीरखांको बंगालेसे बदलकर अबुलहसनको उसकी जगह भेजा।

५ जिलहज्ज (चैत्र सुदी ८) शनिवारको मध्यान्ह कालमें बाद- शाह पांच हजार रुपयेकी रेजगी अपने दोनों हाथोंसे लुटाता हुआ आगरेके किले में गया।

सफैद चीता।

राजा वरसिंहदेवने एक सफैद चीता भेट किया। बादशाहने और पशु पक्षी तो सफैद रंगके देखे थे पर चीता नहीं देखा था। इसलिये विशेष रूपसे उसका वर्णन अपने ग्रन्थमें किया है।

रावरतन हाडा।

इन्हीं दिनोंमें भोज हाडाके बेटे रावरतनने जो राजपूत जातिके बड़े अमीरोंमेंसे था हाजिर होकर ३ हाथी नजर किये। उनमेंसे एक जो सबसे बड़ा था १५ हजार रुपयेका सरकारमें आंका गया और खासके हाथियों में रखा गया। बादशाह लिखता है--"मैंने उसका नाम रतन गज रखा। हाथीका मोल हिन्दुस्थानके राजोंमें पच्चीस हजार रुपये अधिक नहीं होता है लेकिन आजकल हाथी बहुत मंहगे होगये हैं। रतनको मैंने सरबलन्दरायके खिताबसे सम्मानित किया।

भावसिंह।

भावसिंहका मनसब दो हजारी जात और सौ सवारका होगया।

राजा सूरजसिंह।

२५ (बैशाख बदी ११) को राजा सूरजसिंहने हाजिर होकर नजर न्यौछावर की। वह राना अमराके चचेरे भाई श्यामसिंहको