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जहांगीरनामा।

लाहोरसे कूच।

रविवार(१) को पहर दिन चढ़े बादशाहने लाहोरसे कूच किया कुलीचखांको हाकिम, और कवासुद्दीनको दीवान, शैख यूसुफको बखशी और जमालुल्लहको कोतवाल करके हरेकको यथायोग्य सिरोपाव दिया।

२५ शब्बाल (फागुन बदी ११) को सुलतानकी नदीको उतरकर जकोदरसे २ कोस पर पड़ाव हुआ। अकबर बादशाहने तुलादानके कोषमेंसे शैख अबुलफजलको बीस हजार रुपये इन दोनों परगनों के बीच में पुल बांधकर पानी रोकनेके लिये दिये थे। बादशाह लिखता है--"सच यह है कि यह जगह बड़ी साफ और हरी भरी है।" उसने नकोदरके जागीरदार मोअज्जु लमुल्कको हुक्म दिया कि इस पुलके एक तरफ बगीचा और मकान बनावे जिसको देख कर आने जानेवाले प्रसन्न हों।

पानीपत और करनालके बीचमें मुसाफिरोंको दो सिंह सताया करते थे। बादशाहने १४ रविवार(२) (चैत्र बदी १) को दोनों सिंह हाथियोंके हलकेमें घेरकर बन्दूकसे मार दिये। रस्ता जो बन्द होरहा था खुल गया।

दिल्लीमें प्रवेश।

१८ (चैत्र सुदी ५) गुरुवारको बादशाह दिल्ली में पहुंचकर सलेमगढ़में उतरे जिसे सुलतान सलेमशाह पठानने यमुनाके बीच में


(१) इस रविवारको क्या तिथि थी यह मूलमें नहीं लिखी है शव्वालकी १ तारीख माघ सुदी २ शनिवारको थी। पीछे एक रविवार तीजको, दूसरा, एकादशीको, तीसरा फागुन बदी २ को और चौथा नवमीको था। इन चारों रविवारोंमेंसे किस रवि- वारको कूच किया? सुलतानपुर लाहोरके पासही है इससे सन्सव है कि फागुन बदी २ या, नवमीको कूच किया होगा।

(२) मूलमें भूलसे सोमवार लिखा है।