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जहांगीर बादशाह सं० १६६४।

मकानोंमेंसे किसीको जो अपने रहने योग्य न देखकर हुक्म दिया कि उनको गिराकर बादशाहोंकेमे राजभवन और दीवानखाने बनावें।

अस्तालिफ नाम खानसे आये हुए शफतालुओंमें से एका तोलमें ६३ रुपये अकबरी (६० तोले) का हुआ उसको गुठलीका गूदा भी मीठा था।

शाहरुखकी नृत्यु।

२५ (भादों बदी १२) को मालवेसे मिरजा शाहरुखके मरनेकी खबर आई। यह बदखशांका अमीर था। २५ वर्ष पहिले अकबर बादशाहके समयमें आया था और जबसे अबतक विनयपूर्वक सेवा करता रहा था। उसके चार बेटे हसन, हुसैन, सुलतानमिरजा और बदीउज्जमानमिरजा थे। हुसैन तो बुरहानपुरसे भागकर ईरानकी राह से बदखशांको चला गया था। बदखशियोंने उसे अपना स्वामी बना कर बहुतसा अंश अपने देशका उजबकीसे छीन लिया था। उजबकों ने उसको मारडाला फिर बदखशियोंने दूसरे आदमीको मिरजा हुसैनके नामसे अपना मुखिया बना लिया। इस प्रकार कई मनुष्य मिरजाहुसैन बने मारे गये और फिर जीगये। उनमेंसे एक मिरजा हुसैनको अर्जीका आना ऊपर लिखा गया है।

सुलतान मिरजाको बादशाहने अपने पास रखकर बेटोंके समान पाला था राज्याभिषेकके पीछे दो हजारो जात और हजार सवारोंका मनसब दिया था। उसीको अब मालवे भेजा और बदीउज्जमानको हजारी जात और ५०० सवारोंका मनसब दिया।

हाकेका शिकार।

बादशाहने काबुलमें आने के पीछे हाकेका शिकार नाही खेला था इसलिये अब फर्क नामक पहाड़को जो काबुलसे ७ कोस पर है घिरवाकर ४ जमादिउलअव्बल (भादों सुदी ६) मंगलवार को वहां गया। सौ हरन निकले उनससे ५० शिकार हुए और पांच हजार रुपये हाकेवालोंको इनाम दिये गये।