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करुणा की जय हो! मैं चिर पराजित हूँ।'

सहसा बुढ़िया के शीर्ण मुख पर कान्ति आ गई। उसने देखा, एक स्वर्गीय ज्योति बुला रही है। वह हँसी, फिर शिथिल होकर लेटी रही।

रामनाथ ने दूसरे ही दिन सुना कि बुढ़िया चली गई। वेदना-क्लेश-हीन अक्षयलोक में उसे स्थान मिल गया। उस महीने की पेन्हान से उसका दाह-कर्म करा दिया। फिर एक दीर्घ निश्वास छोड़कर बोला, 'अमीरी की बाढ़ में न जाने कितनी वस्तु कहाँ से आकर एकत्र हो जाती हैं बहुतों के पास उस बाढ़ के घट जाने पर केवल कुर्सी कोच और टूटे गहने रह जाते हैं, परन्तु बुढ़िया के पास रह गया था सच्चा स्वाभिमान-गुदड़ी का लाल।'