तारीख ११ अप्रैल सन् १९१२ ई॰ में बंबईके दूसरे गवर्नर सर जार्ज क्लार्कने ताताजीकी मूर्ति परसे परदा उठाया। बंबईके सभी प्रसिद्ध लोग मौजूद थे।
सर दिनशाईदुलजी वाचा (उस वक्त मिस्टर वाचा) ने एक सारगर्भित व्याख्यान देते हुए कार्रवाई शुरूकी। आपने कहा कि मिस्टर ताता जर्मनीके नाहेम नगरमें तंदुरुस्ती ठीक करने गये थे वहीं आपकी मृत्यु होगई। तारीख १९ मई सन् १९०४ ई॰ में आपके मरनेकी खबर इस देश में पहुंची। समग्र देश पर शोक की घनघोर घटा छा गई। उनके मरने से हिन्दुस्तान ने एक कर्मवीर व्यवसायी और सरल चित्तका सर्वप्रिय दाता और परम दूरदर्शी नेता खो दिया। देश भर में जगह जगह शोक प्रकाशित किया गया। वंबई में गवर्नर लार्ड लैमिंगटन बहादुरकी अध्यक्षतामें एक बड़ी सभा कीगई। उसी स्मारक सभाके उद्योगसे ताताजीकी भव्य प्रस्तर मूर्ति तैयार हुई है।
वाचाजीने गवनर सर जार्ज क्लार्क महोदयसे मूर्त्ति परसे परदा हटानेके लिये निवेदन किया। आपके बाद स्वर्गीय सर फिरोजशाह मेहताने गवर्नर महोदयसे मूर्ति खोलनेके लिये आग्रह करते हुए ताताजी के गुणों का गान किया। आपने कहा कि जो लोग कहते हैं कि ताताजी राजनीतिमें दिलचस्पी नहीं लेते थे वह गलत कहते हैं। ताताजीने प्लैटफार्म पर खड़े होकर व्याख्यान नहीं दिये हैं लेकिन धन और सहानुभूतिसे आप सदा राजनैतिक कामों में सहायता देते रहे हैं।