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जीवन चरित्र।


समझकर हृदयमें धारण कर लें तो हमारे बहुत कुछ रोग, शोक, संताप मिट जायं।

हमको अपने पैरों पर खड़ा करनेके लिये, आत्मनिर्भरता सिखानेके लिये, शायद परमात्माने आवश्यक समझा कि वह कुछ दिनोंके लिये मिस्टर ताताको अपने पास बुलालें।

इस देशकी दशा देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि ताताजीकी असमय और अकालमृत्यु हुई। यों तो हमारी प्रार्थनामें कहा जाता है "जीवेम शरदःशतम्" लेकिन कितने लोग सौ बरस तक जीते हैं!

सब कुछ होते हुए भी समय पड़ने पर हम धैर्य छोड़ देते हैं।

सन १९०३ ई॰ के अंतमें ताताजी बीमार पड़े। डाक्टरोंकी रायसे जल वायु बदलनेके लिये आप युरोप गये। जनवरी सन् १९०४ ई॰ में आप बंबईसे रवाना हुए। उसी सन्के मार्चमें आपकी स्त्रीका देहांत होगया। इससे आपको बड़ी चोट पहुंची। कुछ ही दिनके बाद तारोख १९ मईको जर्मनी देशके एक नगरमें आपका देहांत होगया। आपके ज्येष्ठ पुत्र सर दोराब ताता आपकी मृत्यु शय्याके पास मौजूद थे।

आपकी मृत्युका समाचार देश भरमें बिजलीकी तरह फैल गया। समग्र देश शोक सागरमें डूबने उतराने लगा। गरीब, दानवीर ताताके दानका स्मरण करने लगे, कलाकुशल कारीगर और व्यापारी, कर्मवीर ताताकी व्यवसाय चातुरीका