में आपके विचार ऊंचे थे। और सबसे बढ़कर अच्छी बात तो यह थी कि आप उनके जाहिर करनेमें डरते नहीं थे। स्वर्गीय सर फिरोजशाह मेहता ताताके जीवनके अद्वितीय जानकार थे। ताताजीकी मूर्ति खोलनेके उत्सव पर मेहताजीने कहा था कि "यह गलत फहमी फैली हुई है कि ताताजी सार्वजनिक जीवन में भाग नहीं लेते थे और न देशकी राजनैतिक अवस्था, सहायता देते थे। दूसरा कोई आदमी ऐसा नहीं था जिसके राजनैतिक विचार ताताजीसे अधिक जोरदार हों। गोकि प्लैटफार्म पर खड़े होकर बोलनेके लिये आप राजी नहीं किये जा सके। लेकिन आपकी सहायता और सहानुभूति सदा मिलती रहती थी। आप बम्बे प्रेसिडेंसी एसोशियेशनके स्थापित करनेवाले मेंबरों में से थे। इतनाही नहीं, आपने अपने बूढे बापको भी उसमें शरीक होनेके लिये राजी कर लिया था। कांग्रेसके साथ सदा आपका प्रेम था और अकसर मौकों पर आपने धनसे उसकी सहायताकी थी। इसमें कोई अचंभेकी बात नहीं है कि आप ऐसा करते थे। ताज्जुब तो तब होता जब आप राजनीति से अलग रहते।"
राजनैतिक सुविधाओंके बिना औद्योगिक, सामाजिक तथा धार्मिक सुधार हो ही नहीं सकते हैं। जो नित्य काला और काफिर कहकर पुकारा जायगा उसका हताश ह्रदय न तो हौसलेसे कोई रोजगार कर सकता है, न उसका खिन्न चित्त किसी उच्च सामाजिक आदर्शको अपने सामने रख सकता है और न