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जीवन चरित्र।


कर दी जाती है। हमारी तो यह दशा है और विज्ञान विशारद विदेशी वायुसे विंड मिल (हवासे चलने वाले कारखाने) चलाते हैं और अग्नि देवतासे रेल, पुतलीघर और क्या क्या नहीं चलाते।

समयने बतला दिया है कि अपने धार्मिक महत्वकी रक्षा करते हुए, अपने वेद और उपनिषदोंका अध्ययन करते हुए भी हमको उन आडम्बरोंको, उन अंधविश्वासोंको छोड़ना पड़ेगा जो हमारे पूर्वजोंके चलाये नहीं हैं और जो पद पद पर हमको अपमानित और पीड़ित करने के लिये तैयार हैं। कर्मवीर होना होगा, मातृभूमिकी रक्षाके लिये पाश्चात्य लोगोंका शिष्य बनना पड़ेगा। बहुतसी बातों में उनको अपना आदर्श मानना पड़ैगा। महाराज सयाजीराव गायकवाड़ने बहुत ठीक कहा है कि हमको पाश्चात्य देशोंसे साइस सोखना चाहिये और उनकी फिलासफी सिखलानी चाहिये। विद्वान् और देशभक्त बड़ौदानरेशने दो लाइनों में नव्यभारतके आदर्श बड़ी खूबीसे दिखला दिये हैं।

इसमें संदेह नहीं कि पाश्चात्य देश और हमारा पड़ोसी बंधु जापान जरूरतसे ज्यादा धनकी ममतामें पड़े हुए हैं। वे हमसे कहीं बढ़कर शक्तिशाली हैं, इसलिये अधिक कहते डर लगता है, लेकिन इतना तो कहनाही पड़ैगा कि वे इस तरह धन और शक्तिके पीछे पड़कर पाप करते हैं। उनकी लोलुपता का परिणाम बड़ाही भयंकर होरहा है। वे अपनी विषय वासना से अपने देशवासियोमें अधिकांशको दुखी बनाते हुए अपना कोढ़का रोग और देशामें भी फेलाते है।