बेकार रहती थीं। भलेमानस मजदूर लानेके लिये सूरत और भरोच एजेंट भेजे गये। इन जगहोंसे कुछ मजदूरे आये। उनको अच्छी मजदूरी और रहनेके लिये मकान भी दिये गये। लेकिन वे सबके सब रफूचक्कर होगये।
अंतमें मिस्टर ताताने सोचा कि युक्तप्रांतमें मजदूरे सस्ते और बहुत इफरातसे मिल सकते हैं। सन् १८८० के कहत कमीशनने लिखा है कि युक्तप्रांतकी आबादी बहुत धनी है और यहांके बहुतसे लोगोंको रोजगारके लिये बाहर जाना चाहिये। मिस्टर ताताने सोचा कि अगर यहांसे मजदूरे बंबई जायं तो अच्छा हो। आपने सोचा कि युक्तप्रांतमें मजदूरोंको १ आना रोजानासे ज्यादा नहीं मिलता है। बंबईमें जब उनको ६ आने रोज मिलेंगे तब वे खुशी खुशी वहां जायंगे। लेकिन मिस्टर ताताका सोचा हुआ नहीं हुआ। इसके दो कारण मालूम होते हैं। पहली बात तो यह है कि युक्तप्रांतमें भी, मिलमें काम करने योग्य मजदूरोंको उतना कम नहीं मिलता जितना ताता महोदयने सोचा था। दूसरी बात यह है कि घरपर अपने बाल बच्चोंमें रहकर फुरसतके वक्त अपने घरका काम देखते हुए आदमी १ आना रोजमें जितना काम चला सकता है, उतना कई सौ मीलकी दूरी पर, बंबईसी खर्चीली जगहमें अकेला परिवार बंधनसे मुक्त ६ आने पैसेमें नहीं होसकता है।
ताता महोदय ने बंबईके मिल ओनर्स एसोसियेशनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया। लेकिन उसने प्रश्नके महत्वको न