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जीवन चरित्र।


मिस्टर ताता और सिस्टर एन॰ एन॰ वाडिया, भारत गवर्नमेटके फाइनेल मिनिस्टर (अर्थ मन्त्री) के पास भेजे गये।

लेकिन कुछ नतीजा न निकला। इसके थोड़े ही दिन बाद ताता महोदय विलायत गये। वहां आप उस वक्तके भारतमंत्री लार्ड हैमिल्टनसे मिले। हैमिल्टन साहयकी रायमें हिन्दुस्तानी मिलोंका औसत मुनाफा १० या १२ फी सदीसे कम नहीं था। मिस्टर ताताकी रायमें मंत्री साहबके विचार गलत थे। साहब बहादुरने दाता महोदयसे प्रमाण मांगे। ताताजीने बहुत ही विचार पूर्ण रिपोर्ट तैयार करके यह साबित कर दिया कि हमारी मिलोंके मुनाफे औसतन ६ फी सदीसे अधिक नहीं है। इस रिपोर्टकी एक कापी भारतसचिवकी सेवामें भेजी गई। लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ।

एक और महत्वकी बात कहकर यह अध्याय समाप्त किया जायगा। जब ताता महोदयने मिलोंका काम शुरू किया तब काम करनेवालोंकी बड़ी कमी थी। पहले तो मजदूर उचित संख्या मे मिलतेही न थे, जो मिलते थे उनमें भी बहुतसे जुआरी और चोर थे। इस अभावका दूर किया जाना बड़ा आवश्यक था। कुरला नामका स्थान बंबईके बदमाशोंका अड्डा बन गया था। कपड़ा बुननेवाले अधिकांश मुसलमान जुलाहे थे, जो बड़े कलहप्रिय और बदमाश थे। बात बातमें ये लोग हड़ताल कर दिया करते थे। ताता महोदयने इनको बहुत समझाया बुझाया लेकिन कुछ नतीजा न हुआ। मजदूरे न मिलनेसे बहुतसी मशीनें रोज