आवश्यक समझी थी। यही कारण है, कि आपके कल कारखाने बड़ी कामयाबीसे चल रहे हैं, हजारों देशवासियोंका पेट भर रहे हैं, धनवानोंको अच्छा मुनाफा दे रहे हैं और देशका करोड़ो रुपया विदेश जानेसे बचा रहे हैं।
हिन्दुस्तानके बड़े से बड़े व्यापारियो और मिल वालों को जो महत्व मिल सकता था, वह ताता महोदयको मिल गया। 'स्वदेशी' और 'इम्प्रेस' मिलों के नाम देश ही नहीं विदेशों में भी फैल गये।
ताता महोदय ऐसे रोजगारियोंमें से नहीं थे जो देश हीके रुपयेको इधर से उधर कर देने को तरक्की और व्यापार कहते है। आप समझते थे कि जब तक देशके धन को बाहर जानेसे न रोक दिया जाय या विदेशों के रुपये भारत में न खींच लिये जायं तब तक व्यापार, व्यापार नहीं और न मुनाफे को मुनाफा कह सकते हैं। आपके कपड़े और सूतकी मिलें इसी इरादेसे खोली गई थीं।
सन् १८९५ ई॰ में भारत के बने हुए कपड़ों पर टैक्स लगाया गया। विलायती जुलाहों के विचारमें हिन्दुस्तानी व्यापारी बहुत मोटे होते जाते थे, इसलिये उनके स्वास्थ्यके लिये आवश्यक था कि उन्हें दुबले होनेकी औषधि दी जाय। शायद इसी मतलबसे हिन्दुस्तानी कारखानोंपर इक्साइज ड्यूटी लगाई गई।
एक तो भारतीय कारीगरीकी दशा वैसे ही खराब हो गयी थी, दूसरे यह टैक्स। आन्दोलन शुरू हुआ। बम्बई मिल ओनर्स एसोसियेशन ने गवर्नमेंट की सेवा में एक मेमोरियल भेजा।