भाग्यसे थोड़े दिनके बाद अबीसीनियांकी लड़ाई शुरू हुई। बंबईसे जो अंगरेजी पल्टन भेजी गई उसकी रसदका ठीका ताताने लिया। एक बरस का सामान किया गया था लेकिन लड़ाई जल्द खतम होगई और ताताको बड़ा मुनाफा हुआ। इससे आपका कारोबार फिर संभल गया।
जिस रूईके रोजगारने बंबईको धक्का दिया था, आपने फिर उसीको उठाया। एक तेलके कारखानेका दिवाला निकल गया था। कुछ लोगोंके साथ आपने वहींके कल पुरजे खरीद कर सूत कातने और कपड़ा बुननेका कारखाना खोला। उससे मुनाफा बहुत हुआ। लेकिन कुछही दिनों बाद आपने उस कारखानेको बेच दिया। बात तो यह थी कि आपकी जबरदस्त आत्मा इस छोटे कारोबारसे संतुष्ट नहीं थी। आपने सोचा कि काम इस तरह उठावैं कि भारतवर्ष दुनियांके बड़े बड़े देशोंका मुकाबिला कर सकै न कि सिर्फ ताता परिवार को इस पांच लाख रुपये मिलैं।
आपने सोचा कि विलायती कपड़ोंका, मुकाबिला करनेके पहले यह देख लेना चाहिये कि उनकी तरक्की की वजह क्या है। देखना है कि मज़दूरी महंगी होनेपर भी किस तरह सस्ते और नुमाइशी कपड़े हमारे बाजारोंमें पटे रहते हैं। आपने बिचारा कि कहां इतने दिनोंके सिद्धहस्त अङ्गरेज कारीगर और कहां दिन भरमें अढ़ाई कोस चलनेवाले, ताना तननेवाले अपढ़ जुलाहे, दोनोंका मुकाबिला कैसे होगा, अपने दरिद्र भाइयों