इनलोगोंने सोचा था कि लड़ाई बहुत दिन तक चलेगी लेकिन वह बहुत जल्द बंद होगई। इससे इनको बड़ा धक्का लगा। पहली जुलाई सन १८६५ ई॰ बंबईके इतिहासमें अभाग्य दिन समझा जाता है। अमीर गरीब होगये, गरीब भिखारी बन गये और भिखारी भूखों मरने लगे। इससे ताता परिवार को भी बड़ा नुकसान हुआ।
लेकिन साधारण आत्मायें जिन कठिनाइयोंसे विदलित और विचलित होजाती हैं महापुरुष उनसे और भी दृढ़ होते हैं। ठीक बात तो यह है कि अगर विघ्न बाधाओं को न झेलना पड़े तो आदमी कमजोर रह जाय और बड़े बड़े कामोंको न उठा सके।
कोंहार घड़ा बनाते वक्त एक हाथ नीचे देता है लेकिन दूसरे हाथले बाहरसे घड़ेको पीटकर मजबूत बनाता है। इसके बाद भी घड़ेकी अग्नि परीक्षा होती है। जब आवेमें पक कर वह पक्का होजाता है तब गर्मी और लूहके सताये पथिकोंको अपना ठंढा पानी पिलाकर उनका हृदय शीतल करता है।
महात्माओं की भी यही दशा है। दुखियोंके दुःख दूर करने के पहले उनको खुद दुःख झेलना पड़ता है।
ताताजीने अपना इंगलैंडका कारोबार बंद कर दिया लेकिन हिन्दुस्तानकी दूकान किसी तरह चलाते रहे। आपने हिम्मत नहीं छोड़ी। किसीने बहुत ठीक कहा है कि जो अपनी मदद आप करता है भगवान भी उसकी मदद करता है। ताताके