पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/१०

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जीवन चरित्र।


बम्बई सूबेके क़रीब क़रीब कुल बड़े आदमियोंने तालीम पाई है। बम्बई इस प्रामीण बालकके लिये एक नई, बिल्कुल निराले ढंगकी जगह थी। कारीगरी, रोजगार, कालेज, कचहरी, नाटकघर सभी चीजें ताताके लिये अजीब थीं। सन १८५८ ई॰ में १९ वर्ष की उम्र में ताताजी अपना पढ़ना पूरा करके कालेजसे अलग हुए। उसी साल इस देशकी सरकारी यूनिवर्सिटियां खुलीं और बी॰ ए॰, एम॰ ए॰ आदि डिग्रियां कायम हुईं। अगर शौक होता तो ताता महाशय दो चार सालमें ग्रैजुयेट होजाते! लेकिन परमात्माने उनको दूसरे कामके लिये जन्माया था और भारतमाता इस सपूतके हाथसे एक दूसरी उन्नति का स्वप्न देख रही थी।

जिसको पापी पेटके लिये अपनी स्वतन्त्रता बेचकर हां हजूर करना नहीं था, जिसको वकील बनकर अपने देश वासियोंको लड़ाकर, उनका खून चूसकर मोटा होना नहीं था, जिसको ज़मींदार बनकर दीन किसानोंके पैदावारकी कच्ची कुर्की करानी नहीं थी, जिसको पुरोहित बनकर परमात्माकी दलाली करके टका ऐंठना नहीं था, जिसको डांड़ी मारकर लोगोंको ठगना नहीं था, जिसको कुली बनकर पापी आरकाटियों का शिकार बनकर, नराधम, श्वेत शरीर कृष्णपन व्यापारियों के लिये फावड़े चलाकर गन्ने पैदा करना नहीं था, जिसके हाथमें भारतकी कारीगरीके उद्धार का यश था, जिसको अपने अशिक्षित और मनमोदक खानेवाले देशवासियों को