उस गौरव का, उच्च कण्ठ से गान करेंगी। भला ऐसे सुअवसर पर आपको प्रसन्न होना चाहिए वा उद्विग्न?
वपुष्टमा—उद्विग्न। प्रमदा, मेरा हृदय बहुत ही उद्विग्न हो रहा है। मेरा चित्त चञ्चल हो उठा है। भविष्य कुछ टेढ़ी रेखा खीचता हुआ दिखाई दे रहा है।
प्रमदा—महादेवी, आपको ऐसी बातें शोभा नहीं देती। एक नई परिचारिका आई है। आज्ञा हो तो उसे बुलाऊँ। वह बहुत अच्छा गाना जानती है। उसी का कोई गीत सुनकर मन बहलाइए।
वपुष्टमा—जैसी तेरी इच्छा।
[प्रमदा जाती है और परिचारिका के वेश में सरमा को लाती है]
प्रमदा—यही नई परिचारिका है?
सरमा—सम्राज्ञी को मैं प्रणाम करती हूँ।
वपुष्टमा—(चौंककर) कौन? तुम्हारा क्या नाम है?
सरमा—मुझे लोग कलिंका कहते हैं।
प्रमदा—नाम तो बड़ा अनोखा है। अच्छा, महादेवी को कोई सुन्दर गीत सुनाओ।
कलिका—महादेवी। मुझे तो केवल करुणापूर्ण गीत आते हैं।
वपुष्टमा—वही गाओ।
प्रमदा—(गाती हैं)
मन जागो जागो।
मोह निशा छोड़ के, मन जागो जागो।
विकसित हो क्मल-वृन्द, मधुप मालिका