पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/९१

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दूसरा दृश्य
स्थान―वपुष्टमा का प्रकोष्ठ
[ वपुष्टमा ]

वपुष्टमा―आर्यपुत्र अश्वमेघ के व्रती हुए है। पृथ्वी का यह मनोहर उद्यान रक्त रञ्जित होगा! भगवन्! क्या तुम भी बलि से प्रसन्न होते हो? यह तो बड़ा सङ्कट है। मन हिचकता है; पर विवशता वही करने को कहती है। धर्म की आजा औह ब्राह्मणो का निर्णय है। विना यज्ञ किए छुटकारा नही। कैसा आश्चर्य है। एक व्यक्ति की हत्या, जो केवल अनजान में हो गई है, विधि- विहित असंख्य हत्याओ से छुड़ाई जायगी! अखण्डनीय कर्म लिपि! तेरा क्या उद्देश्य है, कुछ समझ मे नहीं आता।

प्रमदा―[ प्रवेश करके ] महादेवी की जय हो! परम भट्टारक ने सन्देश भेजा है कि मै गान्धार विजय करके बहुत शोघ्र ही लोटता हूँ। प्रिय अनुजो के साथ महादेवी यज्ञ सम्भार का आयोजन करें।

वपुष्टमा―प्रमदा, जब से मैने अश्वमेध का नाम सुना है, तब से मेरा हृदय कॉप रहा है। न जाने क्या होने वाला है।

प्रमदा―महादेवी, भगवान् सब कुशल करेंगे। आप अपने हृदय को इतना दुर्बल बनाती हैं! सहस्रो राजकुमारी और श्रीमाती के मुकुट मणियो की प्रभा से ये पवित्र चरण रञ्जित होगे, और इन्हें देखकर आर्यावर्त की समस्त ललनाएँ उस माहात्म्य का,