शीला―क्या गुरुजनो के सामने हो ऐसा प्रश्न कीजिएगा?
सोमवा―हाँ, और नहीं तो क्या! पाणिगृहीता भार्या पितृ कुल में वास करेगी, तो मेरा अग्निहोत्र कैसे चलेगा?
शीला―नागराज को कन्या मणिमाला अब थोड़े ही दिनों तक और यहाँ रहेगी; और भाई आस्तीक का भी समावर्तन संस्कार होने वाला है। अभी वह सहमत नहीं होता है; किन्तु कुछ ही दिनों मे स्वीकार कर लेगा। तब तक के लिये मैं क्षमा चाहती हूँ।
सोमश्रवा―तो फिर मैं भी यहीं हूँ?
शीला―क्यों नहीं। फिर पुरोहित क्यो बने थे?
सोमश्रवा―प्रमादपूर्ण युद्ध विग्रह का सम्पर्क मुझे तो नहीं अच्छा लगता। राजा ने मुझे भी तक्षशिला में बुलाया है। किन्तु देवि, मैं तो नहीं जाता। वह वीभत्स हत्या काण्ड मुझसे नहीं देखा जायगा।
शीला―तो फिर यहाँ श्वशुर कुल में रहोगे?
सोमश्रवा―नही, अपने पिता के आश्रम मे रहूँगा। यहाँ से तो वह समीप ही है। कभी कभी आकर तुम्हे भी देख जाया करूँगा।