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जनमेजय का नाग-यज्ञ

मनसा―तुम! तुम घृणित पशु हो, चुप रहो!

काश्यप―सरमादेवी! मेरा अपराध―हाय रे क्षमा―।

सरमा―मनसा! मै प्रतिज्ञा करती हूँ कि मुझसे नागो का कुछ, भी अनिष्ट नहीं होगा।

[ जाती है ]
 

तक्षक―इधर हम लोग भी तो आर्य सीमा, के भीतर ही हैं! क्या किया जाय, कैसे पहुँँचकर वासुकि की सहायता करूँ!

मनसा―चलो! मैं जानती हूँ; एक पथ है, जो तुम्हे सुरक्षित स्थान पर पहुँँचा देगा।

काश्यप―मै भी चलूँँगा! यहाँ नही-पर हाय रे! यहाँ मेरा बड़ा धन है!

मनसा―सावधान! नागराज, ऐसे कृतघ्न का विश्वास न कीजिए।

[ तक्षक और मनसा दानों जाते हैं ]
 

काश्यप―तब चलो भाइयो, हम भी चलें।

सब ब्राह्मण―तुमने व्यर्थ हम लोगो पर भी एक प्रायश्चित्त चढ़ाया।

काश्यप―क्या मैने तुम्हे बुलाया था?

पह० ब्राह्मण―काश्यप, यदि हम पहले से जानते कि तुम इतने झूठे हो, तो तुम से बात न करते!

दूस० ब्राह्मण―तुम इतने नीच हो, यह हम पहले नहीं जानते थे।