दामिनी―मैं प्रतिशोध लेना चाहती हूँ।
तक्षक―किससे?
दामिनी―उत्तङ्क से, जिससे आप मणिकुण्डल लेना चाहते थे।
तक्षक―तुम कौन हो?
दामिनी―मै चाहे कोई होऊँ। जो उत्तङ्क को मेरे अधिकार में कर देगा, उसे मैं मणिकुण्डल दूँँगी।
तक्षक―ठहरो, तुम बड़ी शीघ्रता से बोल रही हो।
दामिनी―क्या विश्वास नही होता?
तक्षक―होता है, पर वह काम इसी क्षण तो नहीं हो जायगा।
दामिनी―चेष्टा करो। शीव्रता करो, नहीं तो तुम इस योग्य ही न रह जाओगे कि उसे पकड़ सको।
तक्षक―( हँस कर ) क्यो?
दामिनी―वह तुम से बदला लेने के लिये जनमेजय के यहाँ गया है। बहुत शीघ्र तुम उसके कुचक्र मे पड़ोगे।
तक्षक―इसका प्रमाण? स्मरण रखना कि तक्षक से खेलना सहज नहीं है। ( गम्भीर हो जाता है )
दामिनी―मैं अच्छी तरह जानती हूँ, तभी कहती हूँ।
तक्षक―अच्छा, तो मेरे यहाँ चलो। मै इसका शीघ्र प्रबन्ध करूँगा। तुम डरती तो नही हो।
दामिनी―नहीं। चलो, मैं चलती हूँ।
५ |