दौर्बल्यं भवतामेतत् यदयंधर्षितः क्रतुः।
(हरिवंश; भविष्य पर्व; अ॰ ५.)
कौटिल्य के अर्थ-शास्त्र के तीसरे प्रकरण में लिखा है―
क्षत्रिय सम्राट् जनमेजय ने अपने राज-दण्ड के बल से एक प्राचीन प्रथा बहुत दिनों के लिये बन्द कर दी। इसमें काश्यप पुरोहित का भी बहुत कुछ हाथ था। इसका प्रमाण भी मिलता है। आस्तीक पर्व के पचासवें अध्याय से इस घटना का एक सूत्र मिलता है कि काश्यप यदि चाहते, तो परीक्षित को तक्षक न मार सकता; और जनमेजय को एक लकड़िहारे की साक्षा से इसका प्रमाण दिलाया गया था। ऐतरेय ब्राह्मण ७-२७ में इसी घटना का इस प्रकार उल्लेख है कि जब परीक्षित जनमेजय ने यज्ञ करना चाहा, तब काश्यप पुरोहितो को छोड़ दिया। इस पर असिताङ्गिरस काश्यप ने बड़ा आन्दोलन किया कि हम्ही पुरोहित बनाए जायँ। सम्भवतः इसी कारण तुर कावषेय ऋषि ने जनमेजय का ऐन्द्र महाभिषेक कराया था (देखिए ऐतरेय ब्राह्मण ८-२१)। इन प्रमाणों के देखने से यह विदित होता है कि अर्थ-लोलुप काश्यप ने इस यज्ञ में विघ्न डाला, और खाण्डव दाह से निर्वासित नागो का विद्रोह आरम्भ हुआ, जिसमें काश्यप का भी छिपा हुआ हाथ होना असम्भव नहीं। कुल बातों को मिलाकर