दूस० विद्यार्थी―अच्छा, हम अपना देख लेंगे। तुम तो बताओ कि कौन काम करोगे जिसमें बिना परिश्रम के लोक तुम्हारे अनुकूल रहे।
त्रिविक्रम―किसी श्रीमन्त के यहाँ विदूपक बनूँगा। आदर से आऊँगा जाऊँगा। कोई काम न धन्धा! मूर्खता से भी लोगो को हँसा लूँँगा; निर्द्वन्द्व विचरण करते हुए जीवन व्यतीत करूँगा।
पह० विद्यार्थी―यह क्यों नहीं कहते कि निर्लज्ज बनूँगा!
त्रिविक्रम―अच्छा जाओ, अपना काम देखो। आज पुण्यक उत्सव है। गुरुजी की ओर से निमन्त्रण है।
वेद―बेटा त्रिविक्रम!
वेद―अरे त्रिविक्रम!
त्रिविक्रम―क्या है गुरू जी?
वेद―बेटा, अपनी गुरुआनी को समझाओ! आडम्बर फैला कर आप भी कष्ट भोगती है, मुझे भी दुःख देती है। समझे?
त्रिविक्रम―गुरुदेव! मेरी समझ मे तो कुछ आना असम्भव है। आपने इतना अध्ययन कराया, पर मेरी समझ में कुछ न आया?
वेद―( चौंक कर ) मूर्ख! मेरा सब परिश्रम व्यर्थ ही गया?