समय आने पर तुम्हारे ही वंशधर इस भारत के अधिकारी होंगे। पर इसके लिये उद्योग करते रहो।
तक्षक―प्रभो, मणिकुण्डल कौन ब्राह्मण लाया है?
काश्यप―( नेपथ्य की ओर देखकर ) लो, वह आ रहा है। हम लोग छिप जाते हैं।
तक्षक―ब्रह्मचारिन, नमस्कार करता हूँ।
उत्तङ्क―कल्याण हो! मैं थक गया हूँ। यदि यहाँ विश्राम करूँ, तो आप असन्तुष्ट तो न होंगे? क्या आप इस कानन के स्वामी है?
तक्षक―अब तो नहीं हूँ; पर हाँ कभी था। आप बैठिए।
तक्षक―क्यों काश्यप, इसने मणिकुण्डल कहाँ रक्खे होंगे?
काश्यप―अपने उष्णोष में। मै हट जाता हूँ। तुम्हे देखकर मुझे डर लग रहा है। तुम इतने भयानक क्यों दिखाई देते हो?
तक्षक―महात्मन्, आप जब अपना धर्म करने लगते हैं, जब यज्ञ करने लगते हैं, तब आप भी मुझे इतने ही भयानक देख पड़ते है। जब पशुओ की कातर दृष्टि आपको प्रसन्न करती है, तब सच्चे धार्मिक व्यक्ति का जी काँप उठता होगा।
काश्यप―अजी वह तो धर्म है, कर्तव्य है!