पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/१०८

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स्थान―पत्नीशाला की पिछली खिड़की
[ आस्तीक टहल रहा है ]
[योद्धा के वेश में मणिमाला का प्रदेश ]

आस्तीक―तुम कौन हो?

मणिमाला―भाई आस्तीक! तुम यहाँ कैसे?

आस्तीक―अरे! मणिमाला, तुम इस वेश मे क्यो?

मणिमाला―भाई! आज विषम काण्ड है। पिताजी ने फिर कुछ आयोजन किया है। मैं भी इसलिये आई हूँ कि यदि हो सके तो उन्हे बचाऊँ।

आस्तीक―मुझे भी सरमा माता ने भेजा है। किन्तु तुम्हारा यहाँ रहना तो ठीक नही। जब कोई उपद्रव संघटित होगा, तब तुम यहाँ रह कर क्या करोगी?

मणिमाला―नहीं, मै तो आज उपद्रव मे कूद पड़ूँगी। क्यो भाई, क्या तुम्हे रमणियो की दुर्वलता ही विदित है; उनका साहस तुमने नहीं सुना?

आस्तीक―किन्तु―।

मणिमाला―आज किन्तु परन्तु कुछ नहीं सुनूँगी। आज मुझे विश्वास है कि पिताजो पर कोई भारी आपत्ति आवेगी।

आस्तोक―क्यों?