यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(९८) जगद्विनोद । अथ अमरष वर्णन ॥ कवित्त--जैसो तै न मोसों कहूं नेकहूं डरात हुतो, सो अब होहूं तोहूं नेकहूं न डरिहौं । कहै पदमाकर प्रचंड जो परैगो तो, उमंड करि तोसों भुजदंड ठोंकि लरिहौं । चलो चलु चलो चलु बिचलन बीचहीते, कीच बीच नीच तो कुटुंबको कचरिहौं । येरे दगादार मेरे पातक अपार तोहिं, पछारि छार कारहौं॥५३॥ दोहा--गरब सु अंजनहीं बिना, कंजनको हारिलेत । खंजन मदभंजन अरथ, अंजन अँखियन देत ॥ बल विया रूपादिको, कीज जहां गुमान । गर्व कहत सब ताहिसों, जैकबि सुर्मा सुजान ॥ अथगर्वका वर्णन ! कवित्त-बानीके गुमान कल कोकिल कहानीकहा, बानीकी सुबानी जाहि आवत भने नहीं ॥ कहै पदमाकर गोराईके गुमान कुच, कुंभनपै केसरिकी कंचुकी ठन नहीं ॥ रूपके गुमान तिल उत्तमा न आनैउर, आनननिकाइ पाई चन्द्रकीरनैं नहीं। मृदुती गुमानमय तूलहू न मानः कछु, गुणकेगुमान गुण गोरिको गनै नहीं ॥५७॥ .