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जगद्विनोद । ( ९७) अथ विबोधका उदाहरण ।। कवित्त--अधखुली कंचुली उरोज अध आधे खुले, अधखुले वेष नखरेखनके झलक। कहै पदमाकर नवीन अध नीवी खुली, अधखुले छहार छराकै छोर छलके ॥ भोर जगि प्यारी अध ऊरध इतकी ओर, भाषी झिखि झिरकि उचार अध पलकें। आग्व अधखुली अधखुली विरकीहैं खुली, अधखुली आनन पे अधखली अलके ॥४९॥ दोहा--अनुरागी लागी हिये, जागी बड़ेप्रभात । ललित नैन बेनी छुटी, छातीपर छहरात ॥५०॥ अथ स्मृतिका उदाहरण || सर्वथा ॥ कंचनआभाकदम्बतरेकारकोऊगईतियतीजतियारी । हौंहूं गई पदमाकर त्यों चलिऔचकआईगोकुंजविहारी ॥ होर हिंडोरेचढायलियोकियो कौतुकसोनकह्योपरैभारी । फुलन बारी पियारी निकुंजकी झूलनहैनवझूलवारी ॥ दोहा--करी जुही तुम वादिना, वाके सँग बतरान । वहै सुमिरि फिरि फिरि तिया,राखति अपनेमान ॥ जहां जु अमरषहोत लखि, दूजे को अभिमान । अमरष तासों कहत हैं, जे कवि सदा सुजाना ५३॥ ७