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क्रोध गर्व जगद्विनोद । बोरिगो बिसासी आज लाजहीकी नैयाको । अहित अन सो ऐसो कौन उपहास है, शोचत खरी म परी. जोवत जुन्हैयाको । बूझेंगे चवैया तब कहीं कहा दैयाइत, पारिगोको भैया मेरी सेजपे कन्हैयाको ॥१५॥ दोहा- लगै न कहुँ बज गलिनमें, आवत जात कलंक । निरखि चौथकोचांद यह, शोचत सुमुखिसशंक ॥ सहि न सकै मुख औरको, यहै असूया जान । दुख दुष्टता, ये स्वभाव अनुमान ॥ १७॥ अथ असूयाका उदाहरण ॥ कवित्न--आवत उसाँसी दुखलगै और हांसी सुनि, दासी उरलाय कही को नहिं दहा कियो। कहै पदमाकर हमारे जान ऊधौ उन, तात कोन मात कौन भ्रातकी कहाकियो । कंकालिनि बरी कलंकिनि कुरूप तसी, चेटकनि चेग ताके चित्तको चहा कियो । राधिकाकी कहावत कहि दीजो मोहनसों, रसिकशिरोमणिके हायधौंकहाकियो ।। ६८ ॥ दोहा-जसोको तसो मिलै, तबहीं जुरत सनेह । ज्यों त्रिभंगतनुश्यामको; कुटिल कूबरीदेह ॥ १९ ॥ धन यौवन रूपादिते, के मदादिके पान । प्रगट होत मदभाव तहँ औरै मति बतरान-1..: