जगद्विनोद । (९) त्यों पदमाकर दोउनपै नवरंग तांग अनंग कि छावै ॥ दौरेदुहूं दुरि देखिबेको युति देह दुहूंकी दुर्रानको भावे । ह्यां इनके रसभीजत त्यों हगढ उनके ममि भीजत आवे॥ दोहा-आजु काल्हि दिन दैकते, भई औरही भांति । उरज उचोहिन दै उरू, तनुतकि तिया अन्हाति ॥ अतिडरते अतिलाजते, जो न चहै रति बाम । त्यहि मुग्धाको कहतहैं, सुकविनवोढ़ानाम ॥३६॥ अथ नवोढाका उदाहरण-सवैया । राजिरही उलही छबिसों दुलही दुरि देखतही फुलवारी । त्योंपदमाकरबालहँसै हुलसै बिलसै मुखचन्द्र उज्यारी ।। ऐसे समयक चातककीध्वनि कानपरौ- डरपी वहप्यारी । चौंकिचली चमकीचितमें घुपद्वैरही चंचल अंचलवारी ॥ दोहा--पियदेख्यो पियसामने, गहत आपनी बांह । नहीं नहीं कहि जगिभजी, यदपि नहीं ढिगनाह ॥ पतिकी कछु परतीति उर, धरै नबोढ़ा नारि । सो बिस्रब्ध नबोढ़ तिय, वर्णत विबुध विचारि ॥ अथ बिस्रब्ध नवोडाका उदाहरण-सवैया ॥ जाहिनचाहकहूंरतिकी सुकछू पतिको पतियानलगी है। त्यो पदमाकर आननमें रुचिकानन भौहैं कमानलगी है ॥ देततिया नछुदैछतियां बतियानमें तो मुसक्यानलगी है। पीतमपान खवाइबेको पश्यंक पासलों जानलगी है ।।
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