(६६) जगद्विनोद। नाचन गोपाल देखो लैही कहा - दबिकै । झेलि देखौ झरिफ सकेलि देखौ ऐसो सुख, मेलि देखो मूठि खेलि देखौ फाग फबिकै ॥६॥ दोहा-हौं गोपाल पै भल चहत, तेरोई बजबाल । चलति क्यों न नंदलाल पै, लै गुलाल रंगलाल ७ सुबिट बखानत है सुकवि, चातुर सबल कलान । दुहुँन मिलावै में चतुर, वहै चेट उर आन ॥८॥ विटका उदाहरण--सवैया ॥ पीतपटी लकुटी पदमाकर मारपखालै कहूंगहि नाखी । यो लखिहालगुवालकोताछिनवालसखासुकलाअभिलाखी ॥ कोकिल कोकिलकै मोकुहू कुहू कोमलकाकेकीकारिका भाखी । रूसिरही बजबालके सामुहे आइ रसालको मञ्जरी रावी ॥ दोहा- हरिको मीत पछीत इमि, गायो बिरह बाय । परत कान्हतजि मान तिय, मिली कान्हसो जाय. अब चेटकका उदाहरण सेवया ॥ साजिसँकेतमें सांवरेको सुगयोई जहां हुतीग्वालि सयानी । त्यो पदमाकर बोलि कह्यो बलि बैठी कहां इतही अकुलानी ॥ तौलौं न जाइतहां पहिरैकिन जौलौरिसात न सासुजेठानी । हौंलखिआयोनिकुञ्जही में परीकाल्हिजुरावीमाल हिरानी ॥ दोहा-उवन ग्वालि तू कित चली, ये उनये घनघोर । हौं आयो लखि तत्र घरै, पैठत कारो चोर ॥१२॥
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