जगद्विनोद। दोहा-सहजसहेलिन सौंजतिय, बिहँसि षिहँसि बवराति । शरदचन्दकी चांदनी, मन्द पतरसी जाति ॥१५॥ कही त्रिविध सो नायिका, प्रथम स्वकीया नाम । पुनि परकीया दूसरी, गणिका तीमीबाम ॥१६॥ अबस्वकीयालक्षणम् ॥ दोहा-निजपतिहीके प्रेममय, जाको मन वच काय । कहत स्वकीया ताहिसों, लज्जाशीलसुभाय ॥ १७ ॥ अथ स्वकीयाका उदाहरण ॥ कवित-शोभित स्वकीयगण गुण गनती में तहां, तेरेनामही की एकरेखा रेखियतु है। कहैं पदमाकर पगीयों पति प्रेमहीमें, पदमिनी तोसी तिया तूही पेखियतु है । सुवरण रूप जैसो सो शील सौरभ याहीते तिहारो तनु धन्यलेखियतु है। सोनेमें सुगन्ध नाहिं सुगन्धमें सुन्योरी सोनो, सोनो औ सुगन्ध तोमें दोनों देखियतु है ॥१८॥ दोहा-खान पान पीछू करति, सोवति पिछले छोर । पाणपियारे ते प्रथम, जगति भावती भोर ॥१९॥ एक स्वकीया की कही, कबित अवस्था तीन । मुग्धा इक मध्या कहत, पुनि प्रौढा परवीन ॥२०॥ अब मुग्धा लक्षणम् ॥ दोहा-झलकत आवै तरुणई, नई जासु अँग अँग।
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