जगाद्विनोद । (५९) त्योपदमाकर यौवनके मदपै मदहै मधुपान पियका ।। रातिकहूंरमि आयोघरै उरमानैनहीं अपराध कियेको । गारिदैमारिदै टारत भावतीभावतोहोतहैहार हियेको । दोहा--यदपि न वैन उचारियतु, गहि निवाहियतुबांह । वदपि गरेई परतहै, गजब गुनाही नांड ॥ ९६ ॥ सहित काज मधुरै मधुर, वैननिकहै बनाय । उरअन्तर घट कपटमय, सो शठ नायक आय ॥ शठका उदाहरण-सवैया ।। करिकन्दकोमन्द दुचन्दभईफिरि दाखनकेउरदागतीहै । पदमाकरस्वादुसुधाते सिरै मधुतेमहामाधुरीजागतीहै ।। मनतीकहायेरी अनारनकी ये अंगूरनते अति पागती है । तुम बातनिसीटीकही रिसमें मिसरी ते मीठी हमैं लागती है। दोहा-हौं न कियो अपराध बलि, वृथा तानियत भौंह । तुम उरसिज हर परसिकै, करत रावरी सौंह ९८॥ उपपति ताहि बखानहीं, जूपरवधूको मीत । बार बधुनको रसिकसो, बैसिक अलज अभीत ॥ अथ उपपतिका उदाहरण ॥ सवैया ।। आछे किये कुचकंचुकीमें घटमेंनट कैसे बटाकरिबेको । मोग दूपैकिये पदमाकर तो दृग छूटछटा करिबेको । कीजैकहाविधिकी बिधिको दियो दारुणलोटपटाकरिबेको ।। हियो कटिबैको कियो तियतेरो कटाक्षकठा करिबेको । .
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