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(४८) जगद्विनोद । घांध झकोरिन चहूँघा खोर खोरनमें, खूब खुशबोइनके खजानेसे खुलत जात ॥३३॥ दोहा--पग दूपुर नूपुर सुभग, जन अलापि स्वरसात । पियसो तिय आगमनकी, कही सु अगमन बात। अथ परकीया अभिसारिकाका उदाहरण ॥ कवित्त-मौलसिरी मंजुनकी गुंजनकी कुंजनको, मोसों घनश्याम कहि कामकी कथै गयो । कहै पदमाकर अथाइनको तजि तजि, गोपगण निज निज गेहके पथै गयो । शोचमति कीजै ठकुरानी हमजानी चित, चञ्चल तिहारो चढि चाहिकै रथैगयो । छीनन छपाकर छपाकर मुखी तूचलि, बदन छपाकर छपाकर अथैगयो ॥३५॥ दोहा--चली प्रीतिवश मीत, मीत चल्यो तियचाहि ॥ भई भेंट अधबीच तहँ, जहाँ न कोऊ आहि ॥३६॥ अथ गणिका अभिसारिकाका उदाहरण-सवैया । केसरिरंगरंगीशिरओढनी कानन कीन्हें गलाब कली हौ । भालगुलाल भरयो पदमाकर अंगनभूपितभाँति भली हो ॥ औरनकोछलतीछिनमें तुम जादिन और नसोंजुछली हौ। फागमेंमोहनकोमनलै फगुवामें कहा अबलेनचलीहौं॥३७॥ दोहा-सही सांझते सुमुखितू, सजि सब साज समाज । को अस भडभागी जुहैं, चलीमनावन काज ॥३०॥