जगाद्वनोद । छाजती छपा मैं यों छबीली छबिछायकै ॥ ढरही सरीहै छरी फलकी छरीसी छपि, सांकरी गली में फूल पाँखुरी बिछायकै ॥९॥ दोहा-फूल बिनन मिस कुंजमें, पहिरि गुंजके हार । मगनिरखत नंदलालको, मुबलि बारही बार 10 गणिका वासकसज्जा-सवैया ॥ नीरके तीर उशीरके मन्दिर धीर समीर जुड़ावतजीरे । त्यों पदमाकर पंकज पुञ्ज पुरैनके पात परे जनु पीरे ।। बीपमकी क्यों गनै गरमी गज गौहर चाह गुलाबगंभीरे । बैठीबधूबनि बाग बिहार में बार बगारि सिवार सतीरे ॥ दोहा-अमल अमोलिक लालमय, पहिरि विभूषणभार । हर्षि हिये परतिय धरयो, सुरख सीपको हार १२ जातियके अधीन है, पीतम रहे हमेश । सुखाधीन पतिका कही, कविन नायका बेश १३ अथ मुग्धास्वाधीनपतिका उदाहरण । कवित्त-चाह भरयो चञ्चल हमारो चित नवलबधू, तेरी चाल चञ्चल चितौनि में बसत है। कहै पदमाकर सु चञ्चल चितौनिहूं ते, औझकि उझकि झझकनि में फंसत है। औझकि उझकि झझकनिते सुरझि पेश, वाहीकी गहनिमाहीं आय बिलसत है।
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