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1 (४२) जगाद्विनोद । दर दर देखौं दरी खानन में दौरि दौर, दुरि दुरि दामिनीसी दमकि दमकि उठै ॥ ५ ॥ दोहा--शुभ श्रृंगार साजे सबै, दै सखीनको पीठि ॥ चले अधखुले द्वारलौं, खुली अधखुली डीठि ॥६॥ प्रौढ वासकसज्जा। कवित्त--चहचही चहल चहूँघा चारु चन्दन की, चन्द्रक चमीन चौक चौकन बढी है आब ॥ कहै पदमाकर फराकत फरस बन्द, फहार फुहारन की फरस फबी है फाब ॥ मोद मदमाती मनमोहन मिलेके काज, साजि मणि मन्दिर मनोज कैसी महताब ॥ गोल गुलगादी गुल गोलमें गुलाब गुल, गजक गुलाबी गुल गिन्दुक गले गुलाब ॥७॥ दोहा- घों शृंगार साजे सुतिय, को कर सकतबखान ।। रह्यो न कछु उपमानको, तिहूंलोकमें आन ॥८॥ 7 परकीया वासकसज्जा । कविन--सोमनीदुकूलनि दुराये रूपरोसनी है, बूटेदार घाँघरीकी घूमनी घुमायकै । कहै पदमाकर त्यों उन्नत उरोजनौ, तंग अँगिया है तनी तननि तनायकै । छजन की छाँह छकि छैलकै मिलैकेहेत,