जगद्विनोद । मुखन सु बिम्ब लग्यो दूषन कदम्ब लग्यो. मोहिं न विलम्ब लग्यो आई गेह तजिकै। मींजन मयंक लग्यो मीतहू न अंकलग्यो, पंकलग्यो पायँन कलंकलग्यो बजिकै ॥८॥ दोहा-लखि संकेत सूनोसुमुखि, बोली विकल सभीति कहौकहा किहि सुखलह्यो, कार कुमीतसों प्रीति अथ गणिका विप्रलब्धाका उदाहरण । कवित्त--निशि अंधियारी तऊ प्यारी परबीन चढ़ि, मालके मनोरथके रथ पै चली गई। कहै पदमाकर तहीन मनमोहन सों, भेटभई सटकि सहेटत अली गई। चन्दनसों चांदनीसों चन्द्रसों चमेलिनीसों, और बनबेलिनीके दलनि दली गई। आई हुती छैलक छलैकै छल छन्दनिसों, छैलतो छल्यो न आपु छैलमों छलीगई।८९॥ दोहा--इत न मैन मूरति मिल्यो, परत कौनविधि चैन धनकीभई न धागकी, गई ऐसही रैन ॥ ९ ॥ लहि संकेत शोचे जू तिप, रमन आगमन हेत । नाहीको उत्कण्ठिता, वर्णत सुकार्य सचेत ॥ ९१ ॥ अथ उत्कण्ठिताका उदाहरण- सवैया ॥ ५. ग. कारणकंतको मोचै उसासन आंसहुंमोचै । भावनहरिहराहिय को पदमाकर मोचसकैनसकोचै ॥
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