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॥ श्रीगणेशाय नमः॥ अथ जगद्विनोद। कविवर पद्माकर कृत। 7 1 दोहा-सिद्धिसदन सुन्दरबदन, नँदनंदन मुदमूल । रसिक शिरोमणि साँवरे, सदा रहहु अनुकूल ॥१॥ जय जय शनि शिलामयी, जय जय गढ़आमेर । जय जयपुर मुरपुर सदृश, जो जाहिर चहुँफेर ॥२॥ जय जय जाहिर जगतपति, जगतसिंह नरनाह ॥ श्रीपतापनन्दन बली, रविवंशी कछवाह ॥३॥ जगतसिंह नरनाहको, समुझि सबनको ईश॥ कवि पमाकर देत हैं, कवित बनाय अशीश ॥४॥ कवित्त-क्षात्रन के छत्र छत्रधारिनके उत्रपति, छाजत छटान क्षिति क्षेमके छवैयाहौ। कहै पदमाकर प्रभाकरके प्रभाकर, दयाके दरियार हिन्दूहद्दके रखैयाहौ ॥ जागते जगतसिंह साहिब सवाई, श्री-प्रतापनन्दकुल चन्द आज रघुरैयाहौ ।। आछे रहो राजराज राजनके महाराज, कच्छ कुल कलश हमारे तो कन्हैयाही ॥५॥