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जगद्विनोद। (२९) इकमीनविचारोविंध्योबनसी पुनिजालकेजाइदुमालै परयो । मनतोमनमोहनकेसँगगोतनुलाजमनोजकेपालेपरयो । पुनर्यथा ॥ कवित्त-ऊबतहौं डूबतहौं डगतहौं डोलतहौं, बोलत न काहे प्रीति रीतिन रित चल । कहै पदमाकर त्यों उससि उसाँसिन सों, आंसूत्र अपार आइ आँखिन इतै चल ॥ अवधिहीकी आगम लौं रहत बने तो रही, बीचही क्यों बैरी बन्ध वेदनिवितैचलै 11 मेरेमेरे प्राण कान्ह प्यारेके चलाचलमें, तबतो चलै न अब चाहतकितै चलै ॥४८॥ दोहा-रमण आगमन अवधिलौं, क्यों जिवाययतुयाहि । रहत कण्ठगत अवधिये, आधीनिकसतिआहि४॥ प्रौढाप्रोषित पतिका ॥ कवित्त--लागत वसंतके सुपाती लिखी प्रीतमको, प्यारी परवीन है हमारी सुधि आनवी। कहै पदमाकर इहां को यों हवाल, बिर--हानलकी ज्वालासों दवानलतेमानवी ॥ ऊबको उसाँसनको पूरो मरगास सोतो, निपट उसाँस पवनहूतै पहिचानवी ॥ नैननको ढङ्गसों अनङ्ग पिचकारिन ते, गातनको रङ्ग पीरे पातन ते जानवी ॥५०॥