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(२५) जगद्विनोद। अन्य सुरति दुखिता सुइक, मानवती पुनिरारि ॥ फिरि वक्रोकति गर्विता, यहिविधि भिन्न प्रकार । तिनके लक्षण लक्षिसब, भाषत मति अनुसार ॥ प्रीतम प्रीति प्रतीति जो, और तियातनुपाइ । दुखित होइ सो जानिये, अन्य सुरत दुखताड ॥ अन्य सुरति दुःखिताका उदाहरण ॥ कवित्त--बोलति न काहे येरी पूछे बिन बोलौं कहा, पृछतिहौं कहो भई खेद अधिकाई है। कहै पदमाकर सुमारगके गये आये, सांची कह मोसों आजु कहांगई आई है। गई आई हौं तो पास सांवरेके कौन काज, तेरेलिये ल्यावन सु तेरिये दुहाई है ॥ काहेते न ल्याई फिरि मोहन बिहारीजूको, कैसे बाहिल्याऊँ जैसे वाको मनल्याई है ॥ पुनर्यथा ॥ कवित्त--धोइगई केसरि कपोल कुचगोलनकी, पीकलीक अधर अमोलन लगाई है। कहै पदमाकर त्यो नैनहूं निरंजनमें, तजति न कंपदेह पुलकनि छाई है ॥ बाद मति ठानै झूठ बादिनि भई री अब, दूतपनो छोड़ि धूतपन में सुहाई है।