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(२४) जगद्विनोद । ऐसे समय पदमाकर काहूके आवत पीतपटी फहरानी ॥ गुंजकीमाल गोपालगरेबजबालबिलोकिथकी थहरानी ॥ नीरजते कदिनीरनदी छबिछीजत छोरजपै छहरानी ॥ दोहा-कल करीलकी कुअसों, उठत अतरको बोय ॥ भयो तोहिं भावी कहा, उठी अचानक रोय ॥२०॥ इति परकीया निरूपणम् ।। अथ गणिका लक्षणम् । दोहा-करै औरसों रति रमण, इक धनहीके हेत । गणिका ताहि बखानहीं, जे कवि सुमति निकेत ॥ गणिकाका उदाहरण ।। कवित्त-आरतसों आरत सम्हारत न शीश पट, गजब गुजारत गरीबनकी धारपर । कहै पदमाकर सुगन्ध सरसार वैसे, विथुरि बिराजै बार हरिनके हारपर । छाजत छबीले क्षिति छहर छराकी छोर, भोर उठि आई केलि मन्दिरके द्वारपर । एक पग भीतर सु एक देहरी पै धरे, एक करका एक कर हैं किवाँरपर ॥ २२ ॥ दोहा--तनु सुवरण सुवरण वसन, सुवरण उक्ति उछाह । धनि सुवरणमें ढरही, सुवरणहीकी चाह ॥२३॥ प्रथम कही जो नायका, ते सब विविध विचारि ।