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(१६) जगद्विनोद । कहै पदमाकर पिछोहैं आय आदरसे, छलिया छबीलो कत बासर वितै बितै ॥ मूंदे तहां एक. अलबेलीके अनोखे हग, सुदृग मिचाउ नेक ख्यालन हितै हितै । नेसुक नवायग्रीव धन्य धन्य दूसरी को, आचक अचूक मुख चूमत चितै चितै ॥ ७४ ॥ दोहा--जल बिहार पिय प्यारिको, देखत क्यों न सहेलि । लै चुभकी तजि एकतिय, करत एकसों केलि ॥ इति स्वकीया। , ।। अथ परकीया लक्षण ॥ दोहा-होई जो तिय परपुरुष रत, परकीया सो वाम । ऊढ़ा प्रथम बखानहीं, बहुरि अनूदानाम ॥ ७६ ॥ जो व्याही तिय औरको, करत औरसों प्रीति । ऊढ़ा तासों कहत हैं, हिये सखी रमरीति ॥ ७७ ॥ अथ ऊढाका उदाहरण ।। कवित्त--गोकुलके कुलके गलीके गोप गायनके, जौंलगि कछू को कछू भारत भनै नहीं। कहैं पदमाकर परोम पिछवारनके, द्वारनके दौरि गुण अवगुण गर्ने नहीं । तौलों पलि चातुर सहेलियाहि कोऊ काहूँ, नीके के निचोरै ताहि करत भनै नहीं।