(१३२) जगद्विनोद। बीभत्सरस वर्णन ॥ दोहा-थाई जासु गलानहै, सो बीभत्स गनाव । पीबमेद मज्जा रुधिर, दुर्गधादि विभाव ॥ ४ ॥ नाक दिबो कम्प तन, रोम उठब अनुभाव । मोह असूया मूरछा, दिकसञ्चारी भाव ॥ ५ ॥ महाकाल सुर नील रंग, सू बिभत्स रस जानि । ताको कहत उदाहरण, रसग्रन्थनि उर आनि ॥६॥ अथ बीभत्सका उदाहरण । छप्पय-पढ़त मन्त्र अरु यंत्र अन्त्र लीलत इमि जुग्गिनि मनहुँगिलत मदमत्तगड़तिय अरुण उमग्गिनि हरबगत हरषात प्रथम परमन पलपंगत । जहँ प्रताप जिति जङ्ग रंग अग अग उमंगत ॥ जहँपदमाकरउत्पत्ति अति रणहि रकननदियबहत । चकचकितचिनचरबीनचुनिचकचकाइचण्डरिहत।।। दोहा--रिपु अंबनकी कुण्डली, करिजुग्गिनि जु चबाति । पीबहिमें पागी मनो, युवति जलेबी खाति ॥ ८ ॥ अथ अदभुतरम वर्णन ॥ दोहा--जाको थाई आचरिज, सो अद्भुत रस गाव । असंभावित जेते चरित, तिनको लखत विभाव ॥९॥ वचनबिचल बोलनि कँपनि, रोम उठनि अनुभाव । बितरकशंका मोह ये, तहँ मंचारीभाव ॥ १० ॥ 7 ,
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